मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

बिहार का बदलता स्वरूप

बिहार में आए ऐतिहासिक जनादेश ने साबित कर दिया है कि अरसे तक हिंसा,अराजकता और परिवारवाद की चपेट में जकड़ा बिहार अब करवट ले रहा है। सकारात्मक सोच और रचनात्मक वातावरण का निर्माण करते हुए आम लोगों में विकास की भूख जगी है। नतीजा यह है कि नीतीश भाजपा गठबंधन के साथ दोबारा सत्ता में लौटे। कांग्रेसबसपालोजपा और वामपंथी दलों की बात तो छोडि़एबिहार की बड़ी राजनीतिक ताकत रहे लालू प्रसाद यादव अपनी पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी समेत पूरे कुनबे को डूबा बैठे। बिहार में नीतीश कुमार का कुशल राजनीतिक नेतृत्व ने बिहार को विकास की नई राह पर ले आया है जो एक सबक है उन लोगों के लिए जिन्होंने बिहार के वजूद को अबतक अंधेरे में रखा है। बिहार में नीतीश की जीत राजनीतिक स्थिरता के लिए भी मेंडेट हैजिससे विकास की गति आगामी पांच साल तक अवरुद्ध नहीं हो सकती है। कांग्रेस को सफलता नहीं मिलीइससे जाहिर होता है कि राहुल गांधी का जादू बिहार में नहीं चला। नीतीश कुमार की जीत वह आंधी और बाढ़ हैजिसने बिहार की ऊबड़-खाबड़ राजनीतिक जमीन को समतल कर दिया है। इतना ही नहीं इसने बिहार की राजनीति पटल को बदल कर रख दिया है। बिहार में बीते पांच साल नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी की सहमति से वजूद में रही जेडीयू और बीजेपी गठंधन सरकार ने जरूर इस परिपक्वता को जमीनी धरातल देने में कामयाबी हासिल की है। इस चुनाव में मतदाताओं ने यह भी उद्घोषणा की है कि मतदाता की समझ अब व्यक्तिवादी महत्वाकांक्षा और जातिवादी राजनीति से ऊपर पहुंच गई है। लालू प्रसाद और रामविलास पासवान को बिहार में आईना दिखाते हुए मतदाताओं ने तय कर दिया है कि लोकतंत्र अब अतिवादियोंनौकरशाहों और सामंती प्रवृत्ति के तानाशाहों की पनाहगाह नहीं रहा। नीतीश बिहार में नरेंद्र मोदी की विकासवादी और परिवारवाद से मुक्त छवि के आभामंडल के साथ उभरे हैं। जिस तरह से बीते 10-12सालों में नरेंद्र मोदी का परिवार व कुटुंब के प्रति कोई आग्रह नहीं दिखावही स्थिति बिहार में नीतीश की है। नीतीश का आज भी गांव में कच्चा घर हैलेकिन इसका आशय यह नहीं है कि विकासधारा नीतीश के गांव तक नहीं पहुंची। नीतीश ने गांवों में सड़कपाठशालाअस्पतालपशु चिकित्सालय और आंगनवाड़ी केंद्रों को तो सुदृढ़ किया हीसुरक्षा के भी पर्याप्त इंतजाम किए। नीतीश जहां सहजसरल और आम आदमी के प्रति आसान पहुंच के लिए सजग रहेवहीं लालू-पासवान पंचसितारा संस्कृति के अनुयायी तो रहे हीजातीय-ग्रस्तता से भी ऊपर नहीं उठ पाए। लिहाजा लोगों ने जीवन शैलियों में फर्क कियाराजनीतिक उत्तरदायित्वों का अहसास किया और विकास के लिए नीतीश को वोट दिया। जहां सोशल इंजीनियरिंग की शुरुआत करते हुए लालू ने यादव-मुसलमानपिछड़ों और दलितों के गठजोड़ से बिहार में 15 साल सरकार चलाईवहीं उत्तर प्रदेश में मायावती ने ब्राह्मणहरिजन और मुसलमानों के जातीय समीकरण के बूते सत्ता हथियाई। नीतीश ने दलितों में महादलितमुसलमानों में पसमाना मुसलमानपिछड़ों में अति पिछड़े और मध्य वर्ग को अपने राजनीतिक कौशल से अपने हित में धु्रवीकृत किया। नीतीश ने यादवी दबंगी से मुक्ति के इस रसायन से कुछ ऐसा महारसायन गढ़ा कि महिला मतदाताओं में भी विकास की भूख जगा दी। नतीजतन नीतीश के गठबंधन को महिलाओं के वोट पुरुषों की तुलना में चार फीसदी ज्यादा मिले। यह स्थिति मजबूत कानून व्यवस्था के चलते संभव हुई। बहरहालहर वर्ग के मतदाताओं में विकास,रोटी और रोजगार की भूख जगाने में नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग एक कारगर हिस्सा बनकर उभरी है। जिस निचले तबके में अंदरूनी चल रही लोक लहर ने नीतीश को दोबारा बिहार की सत्ता पर आसीन किया हैउस लोक लहर को जगाने और उसे आवाज देने का काम लालू ने ही किया था। लेकिन इसी बुलंद हुई जुबान से लोगों ने लालू से जब विकास मांगा तो वे बाधा बनकर पेश आए। दबे-कुचलों के विकास की आवाज को लालू ने तवज्जो नहीं दी। लालू बिहार में समस्याओं के हल ढूंढ़ने के प्रति संघर्ष करने की बजाय लोकसभा में सांसदों के वेतन बढ़ानेभ्रष्टाचार को संरक्षण देने और जातीयता को बढ़ावा देने के लिए जरूर अपनी विलक्षण शैली में आवाज बुलंद करते देखे गए। इन सब संकीर्ण कारणों के चलते ही लालू को बिहार में सर्वसमाजों से राजनीतिक ताकत देने के लिए जो जमात मिली थीउसे भी लालू ने केवल जातीय वजूद के परिप्रेक्ष्य में देखना शुरू कर दिया था। जिसका नतीजा यह रहा कि लालू जहां लोकसभा में महज चार सांसदों की उपस्थिति के साथ हैंवहीं बिहार में बमुश्किल दो दर्जन विधायकों की जमात में सिमटकर रह गए। कांग्रेस ने भी इस चुनाव में लालू से पल्ला झाड़कर उन्हें ठेंगा दिखा दिया है। नीतीश नैतिकता के तकाजे के साथ भी पेश आए। उन्होंने समय पूर्व राज्यपाल को इस्तीफा तो दिया हीबिहार विधानसभा में कैबिनेट की बैठक आहूत कर वर्तमान विधानसभा भी 27 नवबंर से पहले भंग कर दी। जिससे जिसकी भी नई सरकार बने उसे अड़चन का सामना न करना पड़े। यह नैतिकता वर्तमान राजनीति के चरित्र में दुष्कार होती जा रही है। राजनीतिक दलों और नेताओं को इस पहल से सबक सीखने की जरूरत है। बहरहालदेशहित और स्वच्छ राजनीति के पैरोकार के रूप में नीतीश का जीतना इसलिए भी जरूरी था कि शिक्षास्वास्थ्य और सुरक्षा को दुरूस्त करने और नागरिकों को सड़कपानी व बिजली मुहैया कराने के भी कोई मायने होते हैंयदि नीतीश को विजयश्री नहीं मिलती तो देश राजनीति में अपराधीकरण से निजात पाने और कानून व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण की दिशा में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित नहीं होता। तय है आगे भी देश में बिहार का अनुसरण होगा और बिहारियों का नाम पूरे देश में सम्मान के साथ लिया जाएगा। बिहार को जिसकी जरूरत थी वह मिल गया बस अब तो एक ही नारा है बिहार देश की पटल पर एक शसक्त और सुदृठ राज्य  का दर्जा दिलाना जिससे बिहारवासियों को रोजगार मिल सके। उसे किसी राज्य में नौकरी के लिए नही जाना पड़े। बिहारी मांईडेड से ऊपर उठकर लोगों को अब खुले आसमां में हवा लेने की जरूरत है क्योंकि बिहार विकास के रास्ते पर दौड़ लगाने जा रही है जिसे नीतीश के 2015 का लक्ष्य में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का सपना पूरा हो जाएगा।

1. नीतीश कुमार- गृह, निगरानी, निर्वाचन, सामान्य प्रशासन, मंत्रिमंडल सचिवालय व ऐसे सभी विभाग जो किसी को आवंटित नहीं
2. सुशील कुमार मोदी- वित्ता,वाणिज्यकर, पर्यावरण एवं वन
3. विजय कुमार चौधरी- जल संसाधन
4. विजेंद्र प्रसाद यादव- ऊर्जा, उत्पाद एवं मद्य निषेध, निबंधन व संसदीय कार्य
5. नंदकिशोर यादव- पथ निर्माण
6. नरेंद्र सिंह- कृषि
7. वृषिण पटेल- परिवहन व सूचना एवं जनसंपर्क
8. रमई राम- राजस्व एवं भूमि सुधार
9.चंद्रमोहन राय- लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण
10. अश्विनी कुमार चौबे- स्वास्थ्य
11. हरि साह- पंचायती राज, पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण
12. भीम सिंह-ग्रामीण कार्य
13. रेणु कुमारी- उद्योग एवं आपदा प्रबंधन
14. जीतन राम मांझी- अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण
15. दामोदर राउत- भवन निर्माण
16. डा. प्रेम कुमार- नगर विकास एवं आवास
17. नरेंद्र नारायण यादव- विधि-योजना एवं विकास
18. प्रशांत कुमार शाही- मानव संसाधन विकास
19. शाहिद अली खान- अल्पसंख्यक कल्याण एवं सूचना प्रौद्योगिकी
20.श्याम रजक- खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण
21. परवीन अमानुल्लाह-समाज कल्याण
22. नीतीश मिश्रा- ग्रामीण विकास
23. अवधेश प्रसाद कुशवाहा- गन्ना व लघु जल संसाधन
24. गौतम सिंह- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
25. जनार्दन सिंह सिग्रीवाल- श्रम संसाधन
26. गिरिराज सिंह- पशु एवं मत्स्य संसाधन
27.सत्यदेव नारायण आर्य- खान एवं भूतत्व
28. रामाधार सिंह- सहकारिता
29. प्रो. सुखदा पांडेय- कला संस्कृति एवं युवा
30. सुनील कुमार उर्फ पिंटू-पर्यटन.

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

Direction Lost Or Human?

Among all God made creations,Human is the best one.As only he is the one,who can express,react his feel as not other creatures.But I am sure today God might also feel repent somewhere on his creation.We all Human,who boast as we are always better than animals.As we have the reasons to live..We have the targets to achieve..We have the capability to achieve our dreams..I want to know for WHAT we are beating upon bush!!Is this for our extra ordinary mind..which is changing world gradually.All changes..Name & Fame is useless..unless we cant be a good human being..
When I look around my surrounding..I feel suffocation as Where I am..Myself poonam tomar from Manali(H.P.).Currently working in Noida.Today I got a pretty much Precious chance to pen down my thoughts in Pahal A Milestone's Blog.If talking about time,Women always remain prop of our society from long time.Yeah,that true in early days we all were admit that,but very sad to say not so now.Man has becume too cheap as he has lost his sense of differentiating between right or wrong.Why?Why women are getting tortured so much?Why girls cant freely step out in society?Why?Men forgot that they got the chance to see this wonderful world just because of a Woman.
If not talking about here and there,simply talking about capital of our great country India-Delhi.Its the top most city where maximum number of Rape cases happen daily.Really feel pity on the management of our country.Is Girl only a mean to satisfy one's inner devil??What rubbish sins people are commiting.really sad.Sucha busted need a pshyco treatemnt.Today girls are equally stepping forward with boys.None is less.But the matter of shame is that few termites are always there for take benefit to destroy the prop of our soiety.I really remained stunned when I listened about continously happened two Rape cases in one month.One in Dhuala Kuan and another one in sultanpur.How cheap Human has becume.
We cant say that our direction has lost.because its only WE,who decide what we have to do and what not to do.only WE,who decide whether we want living wth humality or with devil face.Really laws need to be changed.A rapist freely live in Society after commiting Rape cases.Such a Rapist should be direct stoned to death at the same place,where those busted commit that cheap sin.Because only when one rapist will be Hang to Death directly,only then the other cruel & cheaper one will definately think once before spoiling someone's life.
Need is to change our stuck mentality..change our Direction.Blaming is not any final conclusion.Need is to take strict actions against such rapist.Need is to Have courage to raise voice agaist any Sin or Sinner.Direct strict steps should be taken against sucha social termites.So that if any one dare to commit sucha shameful sin,one's soul must scorn him.

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

कब सुरक्षित होंगी दिल्ली में महिलाएं

रोज की ही तरह आज भी में सुबह उठा और मेने अपने दोस्त से कहा, "आज का पेपर देना देखें तो आज दिल्ली में क्या कुछ खास हो रहा हे !" उसने पेपर मेरी तरफ बड़ा दिया ! मेने पेपर का पहला पन्ना पड़ा जिसमे पहली खबर थी "स्कूलों में मोबाइल पर तमाम सख्ती के बाद भी स्कूली बच्चे इसका इस्तेमाल खूब कर रहें हें " दूसरी बरी खबर फ्रांस के राष्ट्रपती और उनकी पत्नी की भारत यात्रा पर थी, और तीसरी खबर डीजल के मिलावट पर थी, इस तरह से कई खबरों से पहला पन्ना भरा था ! पहला पन्ना पलते ही  तीन नंबर पेज पर नजर न चाहते हुए भी चली गई ! कियोंकि उस पेज पर अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में  साउथ दिल्ली के "धोल्ला कुआँ" के पास एक कॉल सेंटर से आ रही लड़की के साथ हुए सामूहिक बलात्कार  के जाँच की खबर को पढ़ रहा था! अभी में इसे पूरा पढ़ ही रहा था  की ठीक उसी के निचे एक और खबर देख कर में सोच में पर गया! की आखिर हमारी दिल्ली में ये हो क्या रहा हे? आखिर हमारा पुलिस प्रशासन कर क्या रहा हे ? कुछ लोग एक लड़की को कार में अगवा करके ले  जातें हे और उसके साथ पूरी रात......  हम लोग आखिरकार किस दिशा में जा रहें हें ? हम लोगों की मानसिकता  एक औरत के प्रति आखिर क्यों इतनी घिनोनी होती जा रही हे ? आज महिला पुरुषों के साथ - २ चलकर अगर आगे बढ़ना  चाहती हें तो उसे ये अधिकार हे, आज हम लोग महिलों को ३३% आरक्षण की बात कह रहे हैं  तो क्या हम लोग सही में उस  बात को आज भी कुछ रुढ़िवादी लोग बड़े गर्व के साथ कहतें हे, उसी पुराणी कहावत को आजम देने में लगें हें की "औरत आज भी पुरुषों की जागीर हे " पर में  दिल्ली के सभी लोगों से कहना चाहता हूँ की जागीरदारी तो स्वतंत्रता के बाद से ही ख़तम कर दी गई थी तो फिर हम लोग इसको क्यों नहीं स्वीकारतें, या यों कहिये की स्वीकारना ही नहीं चाहतें हें ! दिल्ली हमारे देश की राजधानी हे और हमारा देश अपनी संस्कृति और आपसी भाई चारे के लिए आज भी पुरे विश्व में प्रसिद्ध हे ! लेकिन क्या हमारी सरकार इन कुछेक लोगों, जो की पूरी तरह से मानसिक तौर पर बहुत बीमार हे! क्या इनका इलाज हमारी सरकार व दिल्ली पुलिस के पास कभी होगा भी ? क्या इन लड़कियों को इन्साफ मिल पायेगा ! और में अपने सभी दोस्तों और पाठकों से पूछना चाहता हूँ, की क्या मेरी, आपकी, और हम सबकी इस दिल्ली में महिलाये कभी आजादी से, बिना किसी भय के , अपनी इच्छा से  कभी जी  पायेगी ! 

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

अब कलम की ताकत भी बाजारू हुई !

एक समय था जब भारत देश की आजादी की लड़ाई में हमारी मिडिया ने अपनी कलम की ताकत से पुरे ब्रितानी शासन  की जड़ें हिला दी थी ! उस समय देश को आजाद कराना शायद हमारा मकसद था लेकिन उसी समय से हम लोग ये भी पडतें आयें हें की एक पत्रकार कभी भी किसी के आगे नहीं झुकता, पर अफसोस की दोलत को पाने की हमारी लालच ने इस कहावत को ही उल्टा कर दिया हे ,की" आज हर पत्रकार केवल पेसे के आगे  ही झुकता हे " उसके लिए केवल पैसा ही सबसे बड़ी कमाई हे और उसको इस के लिए चाहे पुरे देश को ही क्यों न बेचना  पड़े ! इसका तजा उदाहरण २ (जि) स्पेकत्रम में दो बहुत ही जानी  मानी मिडिया हस्तिओं के नाम का शुमार होना! एक विद्यार्थी अपनी पढ़ाई के समय अपना लक्ष्य निर्धरित करता हे की वह कल बड़ा होकर एक सच्चा पत्रकार बनेगा पर क्या उसे इस लक्ष्य को न रखने के लिए नहीं कहना चाहिए ! क्योंकि जिन लोगो की सचाई के किस्से सुनकर उसने अपना इरादा मिडिया की और आने का किया हे वो लोग तो आज माया की मोहमाया में इतने जकड़े नजर आरहे हें की उनका इसमें लिप्त होना मिडिया की सुर्खिया बन रही हे ! लेकिन मिडिया में भी केवल इन्टरनेट मिडिया ही इस मामले को अधिक प्रचरित कर रही हे ! ये दोनों नाम अपने आप में बहुत बड़े  हे ! और मिडिया में आने वाले हर कोई इनको अपना आदर्श मानकर ही पत्रकारिता अपना मुकाम हासिल करने के लिए आते हें ! क्या हमको इसके लिए कोई नई पहल नहीं करनी चाहिए ? क्या हमें कलम की ताकत को बाजारू होने से नहीं बचाना चाहिए ?
आपके सभी के कमेन्ट इस पर जरूर चाहूँगा
एस एस नेगी